मै कैसा पत्रकार बनुँगा ?

कभी कभी सोचता हूँ  मैं कैसा पत्रकार बनूगा। वैसा पत्रकार जो रोज शाम को टेलिविज़न मैं चिलता है या जो चुप चाप खबरें लाता है और ग़ुमनामी के अँधेरे मैं  कही खो सा जाता है।  मुझ मैं आज का विपणन पत्रकार(marketing  jounalist ) बने जैसी कोई खूबी नहीं है जो सादारण सी खबर को बेच दे और असली खबर को छुपा दे। ना मैं चिला चिला के लोगो को ग़ुमराह कर सकता हूँ ना किसी के झूठ को सच बना सकता हूँ। जब मैं किसी को बताता हूँ  की मैं पत्रकार बना चाहता हूँ तो सुने को मिलता है तू बोलने मैं अच्छा नहीं है। सच ही बोलते हैं मैं कैमरा के आगे बोलने मैं हिचक्ता हूँ। इंग्लिश मेरी एक आम भारतीय  छात्र जैसी है। हिंन्दी आम पहाड़ी जैसी है। पर मुझ मैं पत्रकार बने के दो  हैं खूबियाँ  हैं सवाल करने  और सच को जानने की जिग्यासा या मैं सनक भी  बोल सकता हूँ। सनक जो तब तक सन्त नहीं होती जब तक ये ना जान लू ये क्यों हुआ कैसे हुआ। मुझे याद है बचपन मैं दादा जी एक सर्त पर कहानी सुनते थे की कोई सवाल मत पूच्छना। मैं इन खूबियों के साथ आज की पत्रकारिता की दुनिया मैं कहीं फिट नहीं बैठता। खुद को इस मैं फिट करने का लिए मुझे आज के पत्रकारों जैसा ही बना पड़ेगा जो सड़क के  खड़े की खबर को पूरा एक घण्टा दिखा सख्ते हैं पर शिमला मैं हुए सामुहिक बालात्कार की खबर पुरे हफ्ते बाद दिखते हैं। ये इसलिए है क्यों की खड़ा दिल्ली मैं था और बलात्कार शिमला मैं हुआ था। मैं  ये खेल समज रहा हूँ थोड़ा समय लगेगा पर समज जाऊंगा। जब पत्रकार बनाने का सोचा था तो सच बोलू मैं प्राइम टाइम के ऐंकर्स से प्रेरित नहीं हुआ था मैं सवाल पूछने के आजादी से प्रेरित हुआ था। जिस चीज से प्रेरित हुआ था सायद वो ना कर पाऊ। तभी ये सवाल मुझे परेशान करता है की  "मैं केसा पत्रकार बनूँगा "। 

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