इन्सान की मौत नहीं इन्सानियत की मौत।
पिछले 8 सालों से सीरिया के समाचार सुन रहा हूँ। जब पहली बार सीरिया का नाम सुना था तो ये भी नहीं जानता था की ये देश कहाँ पर है। पर आज जैसे लगता है भारत का पड़ोसी देश है। सीरिया के इतिहास ओर वर्तमान की जानकारी पड़ोस के नेपाल से भी ज्यादा है। खैर जिसके बारे में जितना पड़ोगे उसका उतना ही ज्ञान होगा। एक बहुत पुरानी सभ्यता वाला देश जिसकी राजधानी दमसुस और सब से बड़ा शहर अलेप्पो दुनिया के सब से पुराने शहरों मे से एक है। जहाँ अलग अलग धर्म और मान्यताओं के लोग प्राचीनकाल से साथ मे रहते थे। जिस देश ने दूसरे विश्व युद्ध के समय यूरोप के सरणनाथियो को अपने देश में जगह दी। पिछले 8 सालों से इस देश के लोगो को आतंकवाद के नाम पर मारा जा रहा है। इन्सानियत को मरते हुआ 8 साल हो गए।आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर इन्सानियत खत्म हो गई। आतंकवाद के नाम पर अफगानिस्तान सीरिया जैसे कितने ही देश खत्म हो गए। आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर देश के देश खत्म कर दिए पर आतंकवाद खत्म नही बढ़ा।
जब भी इस आतंक की वजह ढूंढ़ी शूरुआत सबकी एक सी पाई। दमन के खिलाफ़ सत्ता से लड़ाई। चाहए अर्थी दमन हो सामाजिक दमन या धार्मिक विचारों का दमन। ओर सत्ता की क्रूरता ने इस आतंकवाद को फैलने में मदद की। पर बात आतंक की वज़हों की नही है। बात है इन्सानियत के खत्म होने की। 8 सालों से रोज़ टेलीविजन इन्सानियत मरते हुए देखी। सोच के भी डर लगता है की सीरिया के लोग किस हालात में जी रहे होंगे। ये जो देश आतंक को खत्म करने के नाम पर सीरिया में मिसाइल दाग़ रहे है क्या सोचते है इतिहास उन्हें माफ कर देगा।समय बहुत बलवान है आज जो सीरिया के साथ हो रहा है वो कल उन देशों के साथ भी हो सकता है। विशव युद्ध को अभी 70 साल ही हुए हैं। जिस यूरोपीय देशों ने पूरी दुनिया को जलाया था अंत में खुद जला था। दूसरे के घर की आग अपने घर कब पहुँच जाए पता भी नही चलता है। कोई फ़र्क नही रह गया isis ओर इन देशों में वो भी इन्सानों को मरती थी ये भी उन्हें मार रहे हैं। isis धर्म के नाम पर मरती थी ओर ये देश इन्सानियत को बचाने के नाम पर मार रही है। और अब ये किसी से छुपा नही है की isis जैसे आतंकी गुटों का जनक कौन है। किसने इन आतंकियों को हथियार दिए और क्यों दिए। कभी लगता है सीरिया के लोगो के साथ कितना गंदा मजाक हुआ है। राष्ट्रपति की क्रूर सत्ता के ख़िलाफ़ विद्रोह किया। राष्ट्रपति तो वहीं रहा पर जिन्हों ने मदद के नाम पर हाथ दिया वो भी उन्हें मार रहे है। राष्ट्रपति से लड़ने के लिए हथियार भी इन्ही देशों ने दिए फिर जब अराजकता फैलने से isis बना तो मारने भी आ गए। ये गंदा मजाक नही तो क्या है। अंत में बस इतना कहूंगा की थोड़ी तो इन्सानियत दिखा दे ये देश कहीं अंत में ये ना हो जाए की इन्सानियत ही खत्म हो जाए।
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