सोने की चिड़िया या सपनों की
जब छोटा था तब किसी अखबार में पढ़ा था 2020 तक भारत विकास के मामले में अमरीका को पछाड़ देगा। अभी 2020 को दो साल बचे हैं शायद कोई चमत्कार हो जाए। खैर बचपना था ज्यादा समझ नहीं थी पर बहुत ज्यादा उत्सुक्ता थी वो भारत देखे की जो अमेरिका से आगे हो। अपनी ही कल्पनाओं में खोता था अमेरिका कभी गया नहीं जो तुलना करता। पर आज जब सब समझ गया हूँ तो वो बचपन याद आता है। वो इंतजार याद आता है। आज ऐसा लगता है उस अख़बार ने एक बच्चे से गन्दा मज़ाक किया। झूठ दिखा के एक काल्पनिक दुनिया में फैंक दिया। वो वक्त भी बीजेपी सरकार का था पड़ोस के गांव को पक्की सड़क नसीब हुई थी। आज लग रहा है वही वक्त दोबारा मेरे सामने आ गया है। चारों तरफ अमेरिका से ज्यादा विकास की बात हो रही है सड़कें बन रही हैं। अखबारों में विश्व गुरु बने की बात हो रही हैं। और टेलिविज़न का तो क्या ही कहना। तब भी विकास के नाम पे सड़कें बनती थी। आज भी वही हो रहा है। तब भी आर्मी की बात होती थी आज भी वही होती है तब भी कांग्रेस चोर थी आज भी वही है। तब भी दंगे होते थे आज भी होते है। किताबों के चश्में से देखूँ तो चारों तरफ झूट का कोहरा है। झूठ की दुनिया सी बना दी